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लाखो खर्चा के बाबजूद परिक्षा परिणाम निराशा जनक, जि़म्मेदार खामोश 

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कवर्धा, नई दिल्ली प्रवर्तित एवं छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय आदिम जाति कल्याण, आवासीय एवं आश्रम शैक्षणिक संस्थान समिति द्वारा प्रदेश में एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य जनजातीय वर्ग के विद्यार्थियों को उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान किया जाकर सर्वांगीण विकास करना है । जिसके लिए प्रति विद्यार्थी एक साल में लगभग तीस हजार रूपए व्यय करने का प्रावधान है और वहां पर अध्यापन कार्य में लगे शिक्षको को लगभग एक लाख रुपए प्रतिमाह वेतन दिया जाता है लेकिन बारहवीं बोर्ड परिक्षा में विद्यालय का परिणाम महज बीस प्रतिशत आया है और अस्सी प्रतिशत छात्रों को संस्था से बाहर कर दिया जाता है जो जनजातीय वर्ग के बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ है । इन सबके ज़िम्मेदार आखिर कौन है और उसके ऊपर क्या कार्यवाही तय होगा ।ये बड़ी सवाल है।
लाखो का पगार , परिणाम शून्य
कबीरधाम जिला के बोडला विकासखंड में आदिवासी जनजातीय वर्ग के लोग बहुतायत संख्या में निवास करते है । पहाड़ी इलाका होने के कारण जनजातीय बच्चे शिक्षा से वंचित न हो इसका विशेष ध्यान रखते हुए एकलव्य आवासीय विद्यालय सरकार के द्वारा खोला गया है। वहां पर अध्ययन कर बच्चो को सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है । छात्रों के पर्याप्त विषयवार शिक्षको की नियुक्ति किया गया है जिनका वेतन लगभग एक लाख रुपए प्रतिमाह है । बच्चो को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए अतिथि शिक्षक और कोचिंग की भी व्यवस्था समय समय पर किया जाता है लेकिन वहां पर तैनात शिक्षक बच्चो पर ध्यान नही देते जिसके चलते शिक्षा सत्र2023,24 में बारहवीं में मात्र 20 प्रतिशत ही विद्यालय का परिणाम आया है ।
आदिवासी बच्चो भविष्य से खिलवाड़ ज़िम्मेदार कौन
एकलव्य आवासीय विद्यालय में कक्षा छठवीं से ही प्रेवश लिया जाता है और आवासीय शिक्षा दिया जाता है जिससे वहां अध्ययनरत छात्रों का परिक्षा परिणाम बेहतर हो और आदिवासी छात्र अपने भविष्य का बेहतर निमार्ण कर सके लेकिन यहां तो छात्रों के भविष्य को बेहतर बनाने के बजाए बद से बत्तर बना दिया है। इसके ज़िम्मेदार कौन है तरेंगांव पूरे जनजातीय वर्ग क्षेत्र के रूप में जाने जाते है इसलिए वहां इस विद्यालय की स्थापना किया है।
एकलव्य के नाम को धूमिल कर रहे जिम्मेदार 
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार एकलव्य धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आये किन्तु निषादपुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश हो कर एकलव्य वन में चले गये । उन्होंने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगे । एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया। एक दिन पाण्डव तथा कौरव गुरु द्रोण के साथ आखेट के लिये उसी वन में गये जहाँ पर एकलव्य आश्रम बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। राजकुमारों का कुत्ता भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा। एकलव्य को देख कर वह भौंकने लगा। कुत्ते के भौंकने से एकलव्य की साधना में बाधा पड़ रही थी अतः उसने अपने बाणों से कुत्ते का मुँह बंद कर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी। कुत्ते के लौटने पर कौरव, पांडव तथा स्वयं द्रोणाचार्य यह धनुर्कौशल देखकर दंग रह गए और बाण चलाने वाले की खोज करते हुए एकलव्य के पास पहुँचे। उन्हें यह जानकर और भी आश्चर्य हुआ कि द्रोणाचार्य को मानस गुरु मानकर एकलव्य ने स्वयं ही अभ्यास से यह विद्या प्राप्त की है लेकिन यहां पर लाखो रुपए पगार पाने वाले गुरुजनों के रहे बच्चो का भविष्य खराब कर रहे है।

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