कवर्धा: परंपरा भी गजब की चीज है। परंपरा के आगे जागरूकता बेअसरदार साबित हो रही है। चली आ रही परंपरा का ही यह असर देखने को मिल रहा है कि स्कूल छोड़ बच्चे महुआ चुनने को प्राथमिकता दे रहे हैं। अभिभावकों में नौनिहालों के भविष्य संवारने की चिन्ता है और उन्हें शिक्षा का महत्व समझ में तो आ रहा है। बच्चे और उनके अभिभावक यही मानकर चल रहे हैं कि सिर्फ आठ -दस दिनों की ही बात है। पहले महुआ चुन लो फिर पढ़ने जाना ठीक रहेगा। महुआ बेचकर घर का खर्च निकल जाएगा। इन दिनों महुआ खूब गिर रहा है। बच्चे आंगनबाड़ी और स्कूल के मध्याह्न भोजन की सुविधा छोड़ महुआ चुनने चले जाते हैं। ऐसे में आंगनबाड़ी और स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति कम दिख रही है। बच्चों की चपलता और कोलाहल महुआ पेड़ों के नीचे काफी देखी जा रही है। अहले सुबह परिजनों के साथ बच्चे भी जंगल की ओर महुआ चुनने निकल पड़ते हैं और देर शाम वापस घर लौटते हैं।
आर्थिक लाभ का साधन
बोड़ला विकासखंड के चिल्फी परियोजना के सुपापानी गांव में महुआ बिन रहे एक बुजुर्ग बैगा ने बताया कि सुदूरवर्ती इलाकों के ग्रामीण महुआ को आर्थिक उपार्जन का अच्छा साधन मानते हैं। फिलहाल महुआ चालीस से पचास रुपए प्रतिकलो बिक रहा है। महुआ से ग्रामीणों का राशन , सब्जी सहित अन्य आवश्यक सामग्री का चार महीने का जुगाड़ हो जाता है। ऐसे में बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावक भी महुआ चुनने में लगे हुए हैं।