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खानापूर्ति: नियम अधिनियम का पालन नहीं , भेड़ बकरियां पालक पर कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति

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 कवर्धा , कबीरधाम जिला में वन संपदा की मात्रा प्रचुर है और यहां पर इमारती लकड़ी, औषधी वनस्पतियां , जड़ी बूटियों, पौधे सहित विभिन्न प्रकार के जीव ,जंतु ,वन्य प्राणी, तितली , मोर,हिरण मौजूद है बावजूद लगातार वनों की रकबा में कमी आ रहा है जिसके चलते सभी खतरे में दिखाई दे रहे है । प्रतिवर्ष गर्मियों के दिनों में वन्य प्राणी मौदानी इलाको में दिखाई देते और अपनी जान भी गवां रहे है इसका कई तरह के कारण हो सकते लेकिन मुख्य रूप से वनों की विनाश ही है। जहां पर अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं होने के कारण सुरक्षित स्थान की तलास में निकल पड़ते है ।
लगातार वनों की रकबा में कमी 
कबीरधाम जिले के वनों की रकबा में लगातार कम होती दिखाई दे रहा है। जिसके पीछे प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष रूप वन अमला ही जिम्मेदार है । ऊंची पहाड़ो के टीले पर भी वनवासियों को खेती करते देखे जा सकते हैं। वनवासी वनों पर अतिक्रमण करने के लिए पेड़ो पर पहले गैडलिंग करते है फिर सुख जाने पर काटते है फिर कब्जा करते हैं । उन पर विभाग कोई कठोर कार्यवाही करने में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। वर्षो से जमे कार्यालयीन कर्मचारी और मैदानी अमला भी इसका एक प्रमुख वजह हो सकते है । कठोर कार्यवाही करने के बजाए ज्ञान बाटकर दिखावा की कार्यवाही करते हुए खाना पूर्ति करते दिखाई देते है ।
कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति
वन अमला जंगल की सुरक्षा को लेकर गंभीर दिखाई नहीं देता है। कार्यवाही तो लगातार हो रहा है लेकिन महज खानापूर्ति कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन कर खूब वाहवाही लूटने में कोई कसर नही छोड़ रहे है। जो मीडिया और सोशल मीडिया पर दिखाई दे रहा है।ऐसा बहुत से मामला छुपा हुआ है जिसमे आरोपी को पकड़े जाने के बावजूद अज्ञात पी ओ आर की कार्यवाही करते है । कुछ में तो वन अमला लेन देन कर मामला को आपस में ही सुलझाकर सहानभूति देते दिखाई पड़ता है ।
भेड़ बकरियां ऊट पालक के सामने बेबस
गुजरात और राजस्थान से भेड़ बकरियां ऊट लेकर पशुपालक वर्षो से कबीरधाम जिला और पड़ोसी जिले में आकर अपनी जीविका चलाते हैं। इनके द्वारा बरसात और ठंड के दिनों में जंगल में रहकर अपने पशुओं को चारा चराते है । भेड़ बकरियां जंगल के छोटे छोटे पौधा और उनके कोमल पत्ते को खा कर अपनी पेट भरते है वही ऊट बड़े बड़े पेड़ो की ढगलियो को तोड़कर अपना पेट भरता है । इसकी जानकारी सभी जिम्मेदार को है । उनको जंगल से भागने के बजाए एक जगह से दूसरे जगह खदेड़ने और समझाइश देने तक सीमित हो जाते है । छोटी मोटी चराई की कार्यवाही कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन कर लेते है जबकि वन अमला को मालूम है कि आखिर ये अन्य राज्य से कबीरधाम के जंगल में ही रहते है और हजारों की संख्या में भेड़ बकरियां ऊट एक एक पशु पालक के पास हजारों की संख्या में मौजूद है तो ये मौदनी इलाको में नही जा सकते क्योंकि खेतो में किसानो के द्वारा फसल की बुआई किया गया है ।
वन औषधी खतरे में
कबीरधाम जिला के जंगल में औषधि गुणों से भरपूर पेड़,पौधे वनस्पतियां , जड़ी बूटियों प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं जिसको लेकर विभाग लाखो रुपए खर्च कर बड़े बड़े प्रसंस्करण लगाया है लेकिन इन्ही पेड़ो और पौधे , औषधी वनस्पतियों को ही भेड़ बकरियां ऊट अपनी भूख मिटाने के लिए चारा के रूप में चट कर रहे है जिसके चलते आधिकांश प्रसंस्करण बंद हो चुका है और इन्ही के चलते ये योजनाएं सफल नहीं हो पा रहे है ।
एक तरफ पौधा रोपण दूसरी ओर चट कर रहे भेड़ बकरियां 
वन विभाग का कुछ वर्षो किए गए पौधा रोपण का आंकड़ा देखा जाए और उसमे जीवित पौधा की मात्रा देखा जाए तो काफी अंतर दिखाई देगा । जिसका मुख्य वजह भेड़ बकरियां ऊट ही है जो छोटे छोटे पेड़ पौधे को अपना चारा बना लेता है फिर पौधा रोपण की खाली जगह पर कब्जा धारियों की नजर पड़ जाता है । उक्त स्थान पर पौधा की जगह किसानो का फसल लहलहाने लगता है ।जो एक गंभीर चिंतनीय समस्याओं को पैदा कर रहा है ।

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