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जिला चिकित्सालय कबिरधाम में सर्पदंश मरीजों का हो रहा बेहतर इलाज , चलाया जा रहा जागरुकता अभियान

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कवर्धा , कबीरधाम जिला में चार विकासखण्ड है । जिसमे बोडला पूर्णतः जंगल और पंडरिया के भी अधिकांश हिस्सा में वनवासियों का ही बहुलुता है वही सहसपुर लोहारा के भी कुछ हिस्सा जंगल पहाड़ो के बसाहट में ही है । जिले में बरसात लगते ही सर्पदंश के मरीज आने लगते है जिसे लेकर कबीरधाम स्वास्थ्य विभाग लोगो को सर्पदंश और उसके बचाव के लिए अभियान छेड़ रहे हैं जिसके चलते लोगो की जीवन बच सके। वनांचल क्षेत्र होने के कारण कुछ लोग आज भी गुनिया बैगा का सहारा लेकर झाड़ फूंक करते है जिससे लोगो की मौत हो जाता है । कुल मिलाकर इसे जागरुकता की कमी ही कहा जा सकता है । जब कोई साँप किसी को काट देता है तो इसे सर्पदंश या ‘साँप का काटना’ कहते हैं। साँप के काटने से घाव हो सकता है और कभी-कभी विषाक्तता भी हो जाती है जिससे मृत्यु तक सम्भव है। अधिकांश सर्प विषहीन होते हैं और कुछ जहरीले साँप भी पाये जाते हैं। साँप प्राय: अपने शिकार को मारने के लिये काटते हैं किन्तु इसका उपयोग आत्मरक्षा के लिये भी करते हैं।
विषैले जंतुओं के दंश में सर्पदंश सबसे अधिक भंयकर होता है। इसके दंश से कुछ ही मिनटों में मृत्यु तक हो सकती है। कुछ साँप विषैले नहीं होते और कुछ विषैले होते हैं। समुद्री साँप साधारणतया विषैले होते हैं, पर वे शीघ्र काटते नहीं। विषैले सर्प भी कई प्रकार के होते हैं। विषैले साँपों में नाग (कोबरा), काला नाग, नागराज (किंग कोबरा), करैत, कोरल वाइपर, रसेल वाइपर, ऐडर, डिस फालिडस, मॉवा वाइटिस गैवौनिका, रैटल स्नेक, क्राटेलस हॉरिडस आदि हैं। विषैले साँपों के विष एक से नहीं होते। कुछ विष तंत्रिकातंत्र को आक्रांत करते हैं, कुछ रुधिर को और कुछ तंत्रिकातंत्र और रुधिर दोनों को आक्रांत करते हैं।
भिन्न-भिन्न साँपों के शल्क भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। इनके शल्कों से विषैले और विषहीन साँपों की कुछ सीमा तक पहचान हो सकती है। विषैले साँप के सिर पर के शल्क छोटे होते हैं और उदर के शल्क उदरप्रदेश के एक भाग में पूर्ण रूप से फैले रहते हैं। इनके सिर के बगल में एक गड्ढा होता है। ऊपरी होंठ के किनारे से सटा हुआ तीसरा शल्क नासा और आँख के शल्कों से मिलता है। पीठ के शल्क अन्य शल्कों से बड़े होते हैं। माथे के कुछ शल्क बड़े तथा अन्य छोटे होते हैं। विषहीन सांपों की पीठ और पेट के शल्क समान विस्तार के होते हैं। पेट के शल्क एक भाग से दूसरे भाग तक स्पर्श नहीं करते। साँपों के दाँतों में विष नहीं होता। ऊपर के छेदक दाँतों के बीच विषग्रंथि होती है। ये दाँत कुछ मुड़े होते हैं। काटते समय जब ये दाँत धंस जाते हैं तब उनके निकालने के प्रयास में साँप अपनी गर्दन ऊपर उठाकर झटके से खीचता है। उसी समय विषग्रंथि के संकुचित होने से विष निकलकर आक्रांत स्थान पर पहुँच जाता है।
सर्पदंश के लक्षण
कुछ साँपों के काटने के स्थान पर दाँतों के निशान काफी हल्के होते हैं, पर शोथ के कारण स्थान ढंक जाता है। दंश स्थान पर तीव्र जलन, तंद्रालुता, अवसाद, मिचली, वमन, अनैच्छिक मल-मूत्र-त्याग, अंगघात, पलकों का गिरना, किसी वस्तु का एक स्थान पर दो दिखलाई देना तथा पुतलियों का विस्फारित होना प्रधान लक्षण हैं। अंतिम अवस्था में चेतनाहीनता तथा मांसपेशियों में ऐंठन शुरु हो जाती है और श्वसन क्रिया रुक जाने से मृत्यु हो जाती है। विष का प्रभाव तंत्रिकातंत्र और श्वासकेंद्र पर विशेष रूप से पड़ता है। कुछ साँपों के काटने पर दंशस्थान पर तीव्र पीड़ा उत्पन्न होकर चारों तरफ फैलती है। स्थानिक शोथ, दंशस्थान का काला पड़ जाना, स्थानिक रक्तस्त्राव, मिचली, वमन, दुर्बलता, हाथ पैरों में झनझनाहट, चक्कर आना, पसीना छूटना, दम घुटना आदि अन्य लक्षण हैं। विष के फैलने से थूक या मूत्र में रुधिर का आना तथा सारे शरीर में जलन और खुजलाहट हो सकती है। आंशिक दंश या दंश के पश्चात् तुरंत उपचार होने से व्यक्ति मृत्यु से बच सकता है।
सर्पदंश से बचने के उपाय
कुएँ या गड्ढे में अनजाने में हाथ न डालना, बरसात में अँधेरे में नंगे पाँव न घूमना और जूते को झाड़कर पहनना चाहिए। इसके अलावा, सांप के काटने से सुरक्षित रहने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने आस-पास के बारे में जागरूक रहें और उन जगहों से बचें जहां सांप मौजूद हो सकते हैं। यदि आप किसी ऐसे क्षेत्र में हैं जहाँ साँपों के रहने के लिए जाना जाता है, तो सुरक्षात्मक कपड़े पहनें, जैसे कि लंबी पैंट और जूते, और अच्छी तरह से चिन्हित पगडंडियों पर रहें। किसी भी सांप को संभालने या स्थानांतरित करने का प्रयास न करें और पालतू जानवरों और बच्चों को उनसे दूर रखें। यदि आप एक सांप को देखते हैं, तो धीरे-धीरे पीछे हटें और क्षेत्र छोड़ दें। यदि आपको सांप ने काट लिया है, तो शांत रहें और तत्काल चिकित्सा सहायता लें।
सर्पदंश के उपचार
सर्पदंश का प्राथमिक उपचार शीघ्र से शीध्र करना चाहिए। दंशस्थान के कुछ ऊपर और नीचे रस्सी, रबर या कपड़े से बाँध देना चाहिए लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि धमनी का रुधिर प्रवाह धीरे हो जाये लेकिन रुके नहीं। काटे गये स्थान पर किसी चीज़ द्वारा कस कर बांधे जाने पर उस स्थान पर खुून का संचार रुक सकता है जिससे वहाँ के ऊतकाे काे रक्त मिलना बन्द हाे जायेगा, जिससे ऊतकाें काे क्षति पहुँच सकती है। किसी जहरीले साँप के काटे जाने पर संयम रखना चाहिये ताकि ह्रदय गति तेज न हाे। साँप के काटे जाने पर जहर सीधे खून में पहुँच कर रक्त कणिकाआे काे नष्ट करना प्रारम्भ कर देते है, ह्रदय गति तेज हाेने पर जहर तुरन्त ही रक्त के माध्यम से ह्रदय में पहुँच कर उसे नुक़सान पहुँचा सकता है। काटे जाने के बाद तुरन्त बाद काटे गये स्थान काे पानी से धाेते रहना चाहिये। यदि घाव में साँप के दाँत रह गए हों, तो उन्हें चिमटी से पकड़कर निकाल लेना चाहिए। प्रथम उपचार के बाद व्यक्ति को शीघ्र निकटतम अस्पताल या चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। वहाँ प्रतिदंश विष की सूई देनी चाहिए। दंशस्थान को पूरा विश्राम देना चाहिए। किसी दशा में भी गरम सेंक नहीं करना चाहिए। बर्फ का उपयोग कर सकते हैं। ठंडे पदार्थो का सेवन किया जा सकता है। घबराहट दूर करने के लिए रोगी को अवसादक औषधियाँ दी जा सकती हैं। श्वासावरोध में कृत्रिम श्वसन का सहारा लिया जा सकता है। चाय, काफी तथा दूध का सेवन कराया जा सकता है, पर भूलकर भी मद्य का सेवन नहीं कराना। अतः साँप के काटे जाने पर बिना घबराये तुरन्त ही नजदीकी प्रतिविष केन्द्र में जाना चाहिये।हम इससे बच सकते हैं। सर्पदंश की स्थिति में अपने आसपास के अस्पताल जाएं , तुरंत संजीवनी एक्सप्रेस 108 ,112 को फोन करे।
जिला चिकित्सालय में हो रहा है इलाज
केस 01
बोडला विकासखण्ड के पालक गांव से सर्पदंश के महिला मरीज ने बताया कि रात के समय अपने घर के आंगन में सोई हुई थी तभी एक जहरीली करैत साफ ने पेट के ऊपरी हिस्सा को काट दिया जिसके बाद परिजनो ने उसे झाड़ फूंक कराते रहे और शरीर में जहर फैल रहा था लेकिन पीड़िता ने अपने परिजनों की बात को एक सिरे से नकारते हुए जिला अस्पताल आई और पांच दिन तक वेंटीलेटर में रहकर उसके बाद 7 तारिक तक ऑक्सीजन मैं 16तारिक को ऑक्सीजन से मरीज को बाहर निकाला गया
केस 02
पंडरिया विकासखण्ड के अंतिम छोर के ग्राम मालकछारा निवासी और हाई स्कूल सराईसेत में कक्षा नवमी के एक छात्र भी सर्पदंश के शिकार हो गया। छात्र ने बताया कि वह रात को भोजन के बाद प्रतिदिन की भाती सो गया और रात में पैर के उंगली के पास को करैत साफ ने बिस्तर में आकर काट दिया । उनके परिजनों ने अस्पताल लाने के बजाए झाड़ फूंक कराते रहे लेकिन लाभ नही मिलने की स्थिती में उन्हें जिला अस्पताल कवर्धा आया गया जहा बहुत ही गंभीर स्थिति मैं 11 तारिक को उसको वेंटिलेटर मैं रखा गया और 15 तारिक को वेंटिलेटर से बाहर निकाला गया और ऑक्सीजन मैं रखा गया जहां उसकी हालत गंभीर था परंतु मौजूद चिकित्सको ने उसका उपचार किया और वह छात्र स्वस्थ हो गया । ड्रॉक्टर गोपेश एमडी मेडिसिन और ड्रॉक्टर ओमप्रकाश गोरे ड्रॉक्टर कवि निश्चेतना विषेगय और पूरी आपातकालीन ड्रॉक्टर और स्टाफ का विशेष योगदान रहा सिविल सर्जन डॉक्टर केशव ध्रुव और एमडी मेडिसीन ड्रॉक्टर गोपेश सर ने सभी जिले के जनता से अपील किया है सर्प दंश मैं झाड़ पुंक मैं मरीजों का समय का बरबादी न करे तुरंत अस्पताल लाना चाइए जिससे मरीज का जान बचाया जा सके

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