कवर्धा , कलेंडर वर्ष 2024 की समाप्ति पश्चात् नए साल 2025 का आगमन हो रहा है। हर साल जहां नए साल के आगमन के पहले ही लोग मौज मस्ती , पूजा पाठ और पिकनिक मनाने जुट जाते थे। वहीं, इस बार ज्यादातर लोग निर्धारित व कम संख्या में पिकनिक स्पाट पर पहुचंना पंसद कर रहे हैं। जिले के ज्यादातर पिकनिक स्पाटों में पर्यटकों का आगमन भी शुरू हो चुका है। हालांकि, पहली जनवरी को सभी पिकनिक स्पाट पर गुलजार रहते हैं। बीता हुआ कल कुछ न कुछ आते हुए नए पल के साथ एक बार फिर सचित्र आंखों के सामने मन से तरोताजा नजर आता है।
कुछ खट्टी मीठी बातें तो कुछ अपनों के साथ बिताए हुए पल को लोग नए साल के आगमन के साथ ही याद करते हैं। 31 दिसंबर की रात को पुराने साल को विदाई देते हुए लोग नए साल का स्वागत करने में जुटे हुए हैं, तो कुछ ऐसे भी है, जो अपनी बुरी आदतों को छोड़ने का वादे भी करते हैं। युवा वर्ग पूरी तरह 31 तारीख की रात को 12 बजे नए वर्ष का स्वागत करने तैयारी मे जुटे हैं।
नगर के आसपास ही घूमने लायक जगह
सैर सपाट का आनंद लेने के लिए शहर के आसपास ऐसी ढेरों जगह है, जो नए साल पर घूमने लायक और मनोरंजक भी है। इस स्थानों में धार्मिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक महत्व की जगह है। यह सभी ऐसी जगह है, जहां बारिश के दिनों को छोड़कर वर्षभर दूर-दूर से पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। जिले के आसपास बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव व अन्य जिलों से लोग घूमने के लिए आते हैं। इसके अलावा विदेशी पर्यटक भी यहां आते है, और सैर सपाटे का खूब आनंद उठाते हैं।
भोरमदेव मंदिर
शहर से 18 किमी दूर छत्तीसगढ़ का खजुराहो के नाम से जाना जाने वाला भोरमदेव मंदिर है। मैकल पर्वतों और प्रकृति के बीच भोरमदेव मंदिर की छटा निराली दिखाई देती है। पर्यटन के लिहाज से भोरमदेव लोगों को काफी आकर्षित करता है। नववर्ष पर यहां मनोरंजन के लिए बहुत कुछ है। 11वीं सदी में निर्मित यह मंदिर ग्राम छपरी , चौरा के पास घाटियों पर है।
मंदिर परिसर में शिव, दुर्गा भैरव और हनुमान का मंदिर प्राचीन पाषाण मूर्तियां का संग्रह भी है। वैसे तो सालभर यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन मौका खास हो तो इसका अलग ही मजा है। नए साल मनाने के लिए भोरमदेव मंदिर से अच्छा स्थान दूसरा और नहीं हो सकता है। यहां रात में ठहरने और खाने-पीने का अच्छा बंदोबस्त है।
भोरमदेव अभ्यारण्य
352 वर्ग किलोमीटर में फैला भोरमदेव अभयारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार टाइगर रिजर्व के बीच में एक गलियारे के रूप में स्थित है। वन्यप्राणी कान्हा से अचानकमार तक भोरमदेव अभयारण्य होकर ही गुजरते हैं। इसलिए इसे दोनों के बीच का गलियारा कहा जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पश्चात कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का एक बड़ा बफर जोन छत्तीसगढ़ में आ गया। इसलिए बड़ी संख्या में वन्य प्राणी यहां विचरण करते नजर आते हैं हाल ही में तितली का सर्वेक्षण कराया गया था जिसमें कई प्रजातियों के तितली यहां पर मौजूद है।
मंडवा महल
भोरमदेव मंदिर से आधा किमी दूरी पर चैर ग्राम के समीप पत्थरों से निर्मित शिव मंदिर है। ऐसी जनश्रुति है कि इस मंदिर में विवाह संपन्न कराए जाते रहे हैं। विवाह मंडप के रूप में प्रयुक्त होने के कारण मंडवा महल कहा जाता है। मंदिर के बाह्य दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई है। गर्भगृह का द्वार काले चमकदार पत्थरों से बना हुआ है। मंडवा महल की इस सुंदरता के कारण ही वर्षभर श्रद्घालुओं का आना-जाना लगा रहता है। नए साल का स्वागत करने के लिए यह स्थान बहुत अच्छा माना जा रहा है।
आकर्षित करती छेरकी महल की गाथा
भोरमदेव मंदिर समूह का एक मंदिर है, जिसके आकर्षक पत्थर के चौखट और भित्ती चित्र बने हैं। प्राचीन काल से अब तक बकरों की गंध से भरी रहती है, जो किसी कौतुहल से कम नहीं है। यह महल भोरमदेव मंदिर से महज आधे किलोमीटर पर स्थित है। भोरमदेव आने वाले पर्यटकों को छेरकी महल सहज ही आकर्षित करता है। नववर्ष मनाने वालों के लिए यह बेहतर विकल्प है।
सरोदा जलाशय
कवर्धा शहर से आठ किलोमीटर दूर सरोदा जलाशय पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। शाम का नजारा देखते ही बनता है। सनसेट पाइंट के रूप में विकसित हो चुका है। इसका निर्माण वर्ष 1963 में किया गया था। यह जलाशय उतानी नाला को बांधकर बनाया गया है। शहर के शोरगुल से दूर जलाशय के आसपास वातावरण हमेशा शांत रहता है। यहां एकांत की अनुभूति होती है। सरोदा जलाशय के आसपास का क्षेत्र सौंदर्य से भरपूर है। यहां लोग कई मौके पर पिकनिक और छुट्टियां मनाने के लिए भी आते हैं।
घाटी के बीच सरोधा दादर है निराला
जिला मुख्यालय से 46 किमी दूर कवर्धा चिल्फी मार्ग में मैकल की चोटी पर यह दर्शनीय स्थल स्थित है। यहां सरोधा दादर रिसोर्ट का निर्माण किया गया है। सैलानी यहां पहाड़ों की सुंदरता, सूर्यास्त के दुर्लभ दृश्य, पल-पल बदलते मौसम व बादलों का आनंद लेने आते हैं। यह स्थल ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त बताया जाता है। राज्य और जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य शासन द्वारा पर्यटकों के लिए कॉटेज का निर्माण किया गया है। इसके ठीक नजदीक बैगा रिसार्ट और पीडाघाट रिसोर्ट बना है, जो पर्यटन के लिहाज से बहुत अच्छी जगह है। शहर के कोलाहल से दूर और प्रकृति के बीच नया साल मनाने के लिए काफी अच्छा माहौल उपलब्ध होगा। सरोधादादर से करीब 25 किमी दूर बहेराखार जलाशय स्थित है। इस जलाशय के ताम्र परियोजना मलाजखंड मध्यप्रदेश में पानी की आपूर्ति की जाती है। बांध की सुंदरता देखते ही बनती है।
विरासत पचराही के अनोखे दृश्य
पचराही आज न केवल देश वरन विदेशों में भी चर्चा को केन्द्र बिन्दु है। बोडला से 12 किमी दूर हॉफ नदी का मनोरम तट इस बात का गवाह है कि यहां हजारों वर्ष पूर्व मानव सभ्यता पल्लवित और पुष्पित थी। पचराही में उत्खनन के बाद विशालकाय भवनों, मंदिरों और प्राचीन मूर्तियों के अवशेष मिले हैं। हाफ नदी के एक ओर पचराही और दूसरी ओर जैन तीर्थ बकेला स्थित है।
छीरपानी जलाशय
बोडला से महज सात किमी दूरी पर छीरपानी जलाशय स्थित है। बांध की ऊंचाई 46.12 मीटर है। इसका विस्तार 1020.98 एकड तक फैला हुआ है। इस जलाशय का निर्माण अगस्त 1999 को हुआ था। मध्यम परियोजना के तहत बनी बांध की सुंदरता देखते ही बनती है। यहां हर साल पिकनिक मनाने के लिए सैकड़ों लोग पहुंचते है।
आस्था का केंद्र चरणतीरथ
वहीं 30 किमी दूर ग्राम तरेगांव में चरणतीरथ पर्यटन स्थित है। यदि आप नए साल मनाने के लिए धार्मिक स्थल की खोज कर रहे हैं तो चरणतीरथ उस पर खरा उतरती है। कहा जाता है कि चरणतीरथ में भगवान श्रीराम की चरणपादुका है, इसके ऊपर चट्टानों से पानी रिसकर गिरता रहता है। यही वजह है कि इसे चरणतीर्थ का नाम दिया गया।
रानीदहरा जलप्रपात
बोडला से 10 किलोमीटर दूर रानीदहरा जलप्रपात पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। रानीदहरा के नाम से ही इसकी सुंदरता झलकती है। इसके नाम का अर्थ पहाड़ों की रानी होता है। पहाड़ी से निरंतर पानी झरता रहता है, जो पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां पहुंचने के लिए बोडला से पक्की सड़क बनी हुई है।
दुरदुरी जलप्रपात
भोरमदेव अभ्यारण में सुंदर घाटियां और पहाड़ स्थित है। इसके पूर्वी भाग में दुरदुरी जलप्रपात है। यह कवर्धा जिले की जीवनदायिनी कही जाने वाली सकरी नदी का उद्यम स्थल है। कल-कल बहती पानी की धार लोगों को सहज ही आकर्षित करता है। दुरदुरी जलप्रपात से पानी कुछ दूरी तक अभ्यारण के अंदर बहती है। दुरदुरी जलप्रपात का पानी अभ्यारण में रहने वाले वन्य प्राणियों के लिए अमृत है। कवर्धा शहर से होते हुए दुरदुरी जलप्रपात का पानी शिवनाथ नदी में मिल जाती है ।