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नामांकन के आखिरी दिन लगे जिंदाबाद के नारे , 2015 की तरह चुनाव परिणाम बदलने की आशंका

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कवर्धा , त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का आदर्श आचार संहिता लागू है। पंच , सरपंच के लिए दस , ग्यारह पंचायतों के लिए अलग अलग स्थान पर नामांकन लिया जा रहा है, जनपद सदस्य के मामले में जनपद पंचायत मुख्यालय और जिला पंचायत सदस्य के लिए कबीरधाम कलेक्ट्रेट में नाम निर्देशन जमा कराया जा रहा है । जिला पंचायत सदस्यो की नामांकन दाखिल करने गए उम्मीदवारों के समर्थकों ने जिंदाबाद के नारे लगते हुए पार्टियां की झंडा के साथ जिला निर्वाचन कार्यालय मतलब जिला कलेक्टर कार्यालय भवन के बरामद तक सैकड़ों की तादाद में पहुंच गए । जो जन मानस में चर्चा का विषय बना हुआ है कि निष्पक्ष चुनाव और मतगणना,सारणीकरण फिर परिणाम को घोषणा कैसे हो पाएगा । जिला निर्वाचन अधिकारी और वहां पर तैनात सुरक्षा बलों की आखिर क्या मजबूरी रहा जो इनको रोक पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं । चर्चा तो यह भी है कि 2015 की तरह कही इस बार भी चुनाव परिणाम में उलट फेर न हो जाए ।
नामांकन में उमड़ा हुजूम 
कबीरधाम जिला पंचायत 14 वार्डो में विभाजित है और अध्यक्ष पद अनारक्षित हैं जिसके चलते दावेदारों की संख्या काफी है । त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का नामांकन भरने उम्मीदवारों ने शक्ति प्रदर्शन करते हुए रैली के रूप में निकलकर नामांकन दाखिल करने जिला कलेक्ट्रेट पहुंचे । भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों ने पहुंचे । जिला कार्यालय में केवल झंडा और गमछा धारियों की मौजूदगी रहा और उनके कार ही दिखाई दे रहा था। कार्यकर्ताओं के हाथों में झंडा और मुंह से जिंदाबाद के नारे से परिसर गूंज रहा था।
निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद पर उठ रहे सवाल 
नामांकन दाखिल के अंतिम दिन जिस प्रकार का हालात देखने को मिला जो काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा होना लाजिमी भी है 2015 में मतदान तो शांतिपूर्ण हुआ , कही कही पर मतगणना में विवाद की स्थिति निर्मित हुई थी लेकिन सारणीकरण (टेबुलेशन )के समय भारी गड़बड़ी करते हुए हारे हुए उम्मीदवारों को जीत दर्ज करा कर उन्हें विजय घोषित किया गया था ।जो काफी चर्चा में रहा है। 
हालात को देख कर उम्मीदवारों में मायूसी 
नामांकन के आखिरी दिन और आर्दश आचार संहिता लागू होने के बावजूद, शांति पूर्ण निर्वाचन करने प्रतिबंधित धारा लागू होने के बाद भी ऐसा माहौल को देखते ही उम्मीदवारों में मायूसी छा गए क्योंकि 2015 में जिस तरह का हालात देखने को मिला था। जनाधार वाले नेताओं को भी जीत के बजाए पराजय का मुंह देखने को मिला था। पूरा पांच साल तक कोर्ट कचहरी के चक्कर भी काटते रहे हैं

 

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